الحمد |
لله |
الذى فضل |
على بنى آدم |
بالعلم |
والعمل |
على جميع العالم، |
والصلاة |
والسلام |
على محمد |
سيد العرب |
والعجم، |
وعلى آله |
وأصحابه |
ينابيع العلوم |
والحكم. |
وبعد... |
|
فلما رأيت |
كثير |
ا من طلاب العلم |
فى زماننا |
يجدون |
إلى العلم |
ولايصلون |
[ومن منافعه |
وثمراته |
ـ وهى |
العمل |
به |
والنشر |
ـ يحرمون |
] لما أنهم |
أخطأ |
وا طريقه |
وتركوا |
شرائطه |
وكل من |
أخطأ |
الطريق |
ضل |
، ولاينال |
المقصود |
قل |
أو جل، |
فأردت |
وأحببت |
أن أبين |
لهم |
طريق التعلم |
على ما |
رأيت |
فى الكتب |
وسمعت |
من أساتيذى |
أولى |
العلم |
والحكم، |
رجاء |
الدعاء |
لى |
من الراغبين |
فيه، |
المخلصين، |
بالفوز |
والخلاص |
فى يوم الدين، |
بعد ما استخرت |
الله تعالى |
فيه، |
وسميته: |
تعليم المتعلم |
طريق التعلم1 |
وجعلته |
فصولا: |
فصل : فى ماهية العلم، |
والفقه، |
وفضله. |
فصل : فى النية فى حال التعلم. |
فصل : فى اختيار العلم، |
والأساتذ، |
والشريك، |
والثبات. |
فصل : فى تعظيم العلم |
وأهله. |
فصل : فى الجد |
والمواظبة |
والهمة. |
فصل : فى بداية السبق |
وقدره |
وترتيبه. |
فصل : فى التوكل. |
فصل : فى وقت التحصيل. |
فصل : فى الشفقة |
والنصيحة |
فصل : فى الإستفادة |
واقتباس الأدب. |
فصل : فى الورع. |
فصل : فيما يورث الحفظ، |
وفيما |
يورث |
النسيان. |
فصل : فـيمـا |
يجـلب |
الـرزق، |
وفيـما |
يمـنع، |
وما يزيـد |
فى العـمـر، |
وما |
ينقص. |
وما توفيقى |
إلا بالله |
عليه |
توكلت |
وإليه |
أنيب. |
|
(فصل |
فى ماهية العلم، والفقه، وفضله ) |
قال |
رسول الله صلى الله عليه وسلم |
: طلب العلم |
فريضة |
على كل مسلم |
ومسلمة |
اعلم |
, بأنه |
لايفترض |
على كل مسلم، |
طلب كل علم |
وإنما يفترض |
عليه |
طلب |
علم الحا |
ل كما قال: |
وأفضل |
العلم |
علم الحال، |
وأفضل العمل |
حفظ الحال |
ويفترض |
على المسلم |
طلب |
ما |
يقع |
له |
فى حاله |
، فى أى حال |
كان |
، فإنه |
لابد |
له |
من الصلاة |
فيفترض |
عليه |
علم ما |
يقع |
له |
فى صلاته |
بقدر ما |
يؤدى |
به |
فرض الصلاة، |
ويجب |
عليه |
بقدر ما |
يؤدى |
به الواجب، |
لأن ما |
يتوسل |
به |
إلى إقامة الفرض |
يكون |
فرضا، |
وما |
يتوسل |
به |
إلى إقامة |
الواجب |
يكون |
واجبا |
وكذا |
فى الصوم، |
والزكاة، |
إن كان |
له |
مال، |
والحج |
إن وجب |
عليه. |
وكذا |
فى البيوع |
إن كان |
يتجر. |
قيل |
لمحمد بن الحسن |
، رحمة |
الله |
عليه: |
لما |
لاتصنف |
كتابا |
فى الزهد |
قال: |
قد صنفت |
كتابا |
فى البيوع، |
يعنى: |
الزاهد |
من يحترز |
عن الشبهات |
والمكرو |
هات |
وكذلك |
فى سائر |
المعاملات |
والحرف، |
وكل من |
اشتغل |
بشيئ |
منه |
يفترض |
عليه |
علم |
التحرز |
عن الحرام |
فيه. |
وكذلك |
يفترض |
عليه |
علم أحوال القلب |
من التوكل |
والإنابة |
والخشية |
والرضى، |
فإنه |
واقع |
فى جميع الأحوال. |
وشرف العلم |
لايخفى |
على أحد |
إذ هو |
المختص |
بالإنسانية |
لأن جميع |
الخصال |
سوى |
العلم، |
يشترك |
فيها |
الإنسان |
وسائر |
الحيوانات: |
كالشجاعة |
والجراءة |
والقوة |
والجو |
د والشفقة |
وغيرها |
سوى العلم. |
وبه |
أظهر الله تعالى |
فضل |
آدم |
عليه |
السلام |
على الملائكة، |
وأمرهم |
بالسجود |
له |
وإنما |
شرف العلم |
بكونه |
وسيلة |
الى البر |
والتقوى، |
الذى يستحق |
بها |
المرء |
الكرامة |
عند الله، |
والسعادة |
والأبدية، |
كما قيل |
لمحمد بن الحسن |
رحمة |
الله |
عليهما |
شعرا: |
تعـلـم |
فــإن الـعلـم |
زيـن |
لأهــلــه |
وفــضـل |
وعــنـوان |
لـكـل مـــحامـد |
وكــن |
مـستـفـيدا |
كـل يـوم |
زيـادة |
من العـلم |
واسـبح |
فى بحـور |
الفوائـد |
تـفـقـه |
فإن الـفــقـه |
أفــضـل |
قائـد |
الى الــبر |
والتـقـوى |
وأعـدل |
قـاصـد |
هو العلم |
الهادى |
الى سنن |
الهدى |
هو |
الحصن |
ينجى |
من جميع الشدائد |
فـإن |
فـقيــهـا |
واحــدا |
مــتـورعــا |
أشـد |
عـلى الشـيطـان |
من ألـف عابد[1] |
وكذلك |
فى سائر |
الأخلاق |
نحو الجود، |
والبخل، |
والجبن، |
والجراءة. |
|
|
|
|
|
|
فإن الكبر، |
والبخل، |
والجبن، |
والإسراف |
حرام، |
ولايمكن |
التحرز |
عنها |
إلا بعلمها، |
وعلم |
ما |
يضادها، |
فيفترض |
على كل إنسان |
علمها. |
وقد صنف |
السيد |
الإمام الأجل |
الأستاذ |
الشهيد |
ناصر الدين |
أبو القاسم |
كتابا |
فى الأخلاق |
ونعم ما |
صنف، |
فيجب |
على كل مسلم |
حفظها. |
وأما حفظ ما |
يقع |
فى الأحايين |
ففرض |
على سبيل الكفاية، |
إذا قام |
البعض |
فى بلدة |
سقط |
عن الباقين، |
فإن لم يكن |
فى البلدة |
من يقوم |
به اشتركوا |
جميعا |
فى المأثم، |
فيجب |
على الإمام |
أن يأمرهم |
بذلك، |
ويجبر |
أهل البلدة |
على ذلك. |
قيل: |
إن العلم |
ما |
يقع |
على نفسه |
فى جميع الأحوال |
بمنزلة الطعام |
لابد |
لكل |
واحد |
من ذلك. |
وعلم ما |
يقع |
فى الأحايين |
بمنزلة |
الدواء |
يحتاج |
إليه |
(فى بعض الأوقات). |
|
وعلم |
النجوم |
بمنزلة |
المرض، |
فتعلمه |
حرام، |
لأنه |
يضر |
ولاينفع، |
والهرب |
عن قضاء |
الله تعالى |
وقدره |
غير |
ممكن. |
فينبغى |
لكل مسلم |
أن يشتغل |
فى جميع أوقاته |
بذكر الله تعالى |
والدعاء، |
والتضرع، |
وقراءة القرآن، |
والصدقات |
[الدافعة |
للبلاء |
[والصلاة] ، |
ويسأل |
الله تعالى |
العفو |
والعافية |
فى الدين |
والآخرة ليصون |
الله |
عنه تعالى |
البلاء |
والآفات، |
فإن من |
رزق |
الدعاء |
لم يحرم |
الإجابة. |
فإن كان |
البلاء |
مقدرا |
يصيبه |
لامحالة، |
ولكن |
يبر |
الله |
عليه |
ويرزقه |
الصبر |
ببركة الدعاء. |
اللهم |
إذا تعلم |
من النجوم |
قدرما |
يعرف |
به |
القبلة، |
وأوقات الصلاة |
فيجوز |
ذلك |
وأما تعلم علم الطب |
فيجوز، |
لأنه |
سبب |
من الأسباب |
فيجوز |
تعلمه |
كسائر |
الأسباب. |
|
وقد تداوى |
النبى |
عليه |
السلام، |
وقد حكى |
عن الشافعى |
رحمة |
الله |
عليه |
أنه |
قال: |
العلم |
علمان: |
علم |
الفقه |
للأديان، |
وعلم |
الطب للأبدان، |
وما وراء |
ذلك |
بلغة |
مجلس. |
وأما تفسير العلم: |
فهو |
صف |
ة يتجلى |
بها |
لمن |
قامت |
هى |
به |
المذكور. |
والفقه: |
معرفة |
دقائق العلم |
|
قال |
أبو حنيفة |
رحمة |
الله |
عليه: |
الفقه |
معرفة |
النفس |
ما |
لها |
وم |
ا عليها. |
وقال: |
ما |
العلم |
إلا للعمل |
به، |
والعمل |
به |
ترك العاجل |
الآجل. |
فينبغ |
ى للإنسان |
أن لايغفل |
عن نفسه، |
ما |
ينفعها |
وما |
يضرها، |
فى أولها |
وآخرها، |
ويستجلب |
ما |
ينفعها |
ويجتنب |
عما يضرها، |
كى لايكون |
عقله |
وعمله |
حجة |
فيزداد |
عقوبة، |
نعوذ بالله |
من سخطه |
وعقوبه. |
وقد ورد |
فى مناقب العلم |
وفضائله، |
آيات وأخبار |
صحيحة |
مشهورة |
لم نشتغل |
بذكرها |
كى لايطول |
الكتاب. |
|
فصل |
فى النية فى حال التعلم |
|
ثم لابد |
له |
من النية |
فى زمان تعلم العلم |
إذ النية |
هى |
الأصل |
فى جميع الأفعال |
لقوله |
عليه |
السلام: |
إنما الأعمال بالنيات. |
حديث صحيح. |
وعن رسول الله صلى الله عليه وسلم: |
كم من عمل |
يتصو |
ر بصورة |
عمل الدنيا، |
ثم يصير |
بحسن النية |
من أعمال |
الآخرة، |
وكم من عمل |
يتصور |
بصورة |
عمل الآخرة |
ثم يصير |
من أعمال الدنيا |
بسوء النية. |
وينبغى |
أن ينوى |
المتعلم |
بطلب |
العلم |
رضاء الله |
والدار الآخرة، |
وإزالة الجهل |
عن نفسه، |
وعن سائر |
الجهال |
، وإحياء الدين |
وإبقاء الإسلام، |
فإن بقاء |
الإسلام |
بالعلم، |
ولايصح |
الزهد |
والتقوى |
مع الجهل. |
وأنشدنا |
الشيخ الإمام |
الأجل |
الأستاذ |
برهان الدين |
صاحب الهداية |
لبعضهم |
شعرا: |
فـساد |
كـبير |
عـالم |
مـتهتـك |
وأكـبر |
منه |
جاهل |
متنسك |
هما |
فتنة للعالمين |
عظيمة |
لمن |
بهما |
فى دينه |
يتمسك |
وينوى |
به: |
الشكر |
على نعمة العقل، |
وصحة البدن, |
ولا ينوى |
به |
إقبال الناس |
عليه، |
ولا استجلاب |
حطام |
الدنيا، |
والكرامة |
عند السلطان |
وغيره. |
وقال |
محمد بن الحسن |
رحمة |
الله |
عليهما: |
لو كان |
الناس |
كلهم |
عبيدى |
لأعتقتهم |
وتبرأت |
عن |
ولائهم. |
ومن وجد |
لذة العلم |
والعمل |
به، |
قلما يرغب |
فيما |
عند الناس. |
أنشدنا |
الشيخ الإمام |
الأجل |
الأستاذ |
قوام الدين |
حماد بن إبراهيم |
بن إسماعيل |
الصفار |
الأنصارى |
إملاء |
لأبى حنيفة |
رحمة |
الله |
عليه: |
من طلب |
العلم |
للمعاد |
فاز |
بفضل من |
الرشاد |
فـيالخسـران |
طالـبيـه |
لـنيل فـضل |
من العباد |
اللهم |
إلا إّذا |
طلب |
الجاه للأمر |
بالمعروف |
والنهى |
عن المنكر، |
وتنفيذ الحق، |
وإعزاز الدين |
لا لنفسه |
وهواه، |
فيجوز |
ذلك |
بقدر ما |
يقيم |
به |
الأمر |
بالمعروف |
والنهى |
عن المنكر. |
وينبغى |
لطالب العلم: |
أن يتفكر |
فى ذلك، |
فإنه |
يتعلم |
العلم |
بجهد كثير، |
فلايصرفه |
إلى الدنيا |
الحقيرة |
القليلة |
الفانية. |
شعر: |
هى الـدنيا |
أقـل |
مـن الـقـليل |
وعاشقها |
أذل |
من الذليل |
تصم |
بسحرها |
قوما |
وتعمى |
فـهم مـتخيرون |
بلا |
دليل |
وينبغى |
لأهل العلم |
أن لايذل |
نفسه |
بالطمع |
فى غير المطمع |
ويحترز |
عم |
فيه |
مذلة العلم |
وأهله. |
ويكون |
متواضعا، |
والتواضع |
بين التكبر |
والذلة، |
والعفة |
كذلك، |
ويعرف |
ذلك |
فى كتاب الأخلاق. |
أنشدنى |
الشيخ الإمام |
الأستاذ |
ركن الدين |
المعروف |
بالأديب |
المختار |
شعرا |
لنفسه: |
إن مـن |
خـصـال |
المـتقى |
الـتواضـع |
وبه |
التقى |
إلى المـعالى |
يرتقى |
ومن |
العجائب |
عجب |
من |
هو |
جاهل |
فى حالة أه |
و السعيد |
أم الشقى |
أم كـيـف |
يخــتم |
عـمـره |
أو روحــه |
يوم الـنوى |
مـتسفل |
أو مرتقى |
والـكـــبـريـاء |
لـربـنـا |
صــفـة |
لــــه |
مـخـصـوصة |
فتجـنبها |
واتقى |
قال |
أبو حنيفة |
رحمة |
الله |
عليه |
لأصحابه: |
عظموا |
عمائمكم |
ووسعوا |
أكمامكم. |
وإنما قال |
ذلك |
لئلا يستخف |
بالعلم |
وأهله |
وينبغى |
لطالب العلم |
أن يحصل |
كتاب الوصية |
التى كتبها |
أبو حنيفة |
رضى |
الله |
عليه |
ليوسف بن خالد |
السمتى |
عند الرجوع |
إلى أهله، |
يجده |
من يطلب |
وكان |
أستاذنا |
شيخ الإسلام |
برهان الدين |
على بن أبو بكر |
قدس |
الله |
روحه |
العزيز |
أمرنى |
بكتابته |
عند الرجوع |
إلى بلدى |
فكتبته، |
ولابد |
للمدرس |
والمفتى |
فى معاملات |
الناس |
منه |
فصل |
فى اختيار العلم |
والأستاذ |
والشريك |
والثبات |
وينبغى |
لطالب العلم |
أن يختار |
من كل علم |
أحسنه وما |
يحتاج |
إليه |
فى أمر دينه |
فى الحال، |
ثم ما يحتاج |
إليه |
فى المآل. |
ويقدم |
علم التوحيد |
والمعرفة |
ويعرف |
الله تعالى |
بالدليل، |
فإن إيمان |
المقلد ـ |
وإن كان |
صحيحا |
عندنا |
ـ لكن |
يكون |
آثما |
بترك |
الإستدلال |
ويختار |
العتيق |
دون المحدثات |
، قالوا: |
عليكم |
بالعتيق |
وإياكم |
بالمحدثات، |
وإياك |
أن تشتغل |
بهذا الجدال |
الذى ظهر |
بعد انقراض |
الأكابر |
من العلماء، |
فإنه |
يبعد |
عن الفقه |
ويضيع |
العمر |
ويورث |
الوحشة |
والعداوة، |
وهو |
من أشراط الساعة |
وارتفاع العلم |
والفقه، |
كذا |
ورد |
فى الحديث. |
وأما اختيار الأستاذ: |
فينبغى |
أن يختا |
ر الأعلم |
والأورع |
والأسن، |
كما اختار |
أبو حنيفة، |
رحمة |
الله |
عليه، |
حماد بن سليمان، |
بعد التأمل |
والتفكير، |
قال: |
وجدته |
شيخا |
وقورا |
حليما |
صبورا |
فى الأمور. |
وقال: |
ثبت |
عند حماد بن سليمان |
فنبت |
وقال |
أبو حنيفة |
رحمة |
الله |
عليه: |
سمعت |
حكيما |
من حكماء |
سمرقند |
قال: |
إن واحدا |
من طلبة العلم |
شاورنى |
فى طلب العلم، |
وكان |
قد عزم |
على الذهاب |
إلى بخارى |
لطلب العلم. |
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